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दो नदियां हैं / प्रमोद कौंसवाल
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दो नदियां हैं
पानी चाहे कितना कम ज़्यादा
वे थाह लेने जा रही थीं
पैंतीस सालों से भी
ज़्यादा समय से
उनका सपना पूरा हो गया
आख़िरकार
वे बह बहकर थक गईं थीं