भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मानव संस्कृति: मॅडिकल चॅक-अप / तरुण

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:25, 20 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर खंडेलवाल 'तरुण' |अनुवादक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धरती की बेटी-संस्कृति:
सुन्दर है! लोन-छब, नाक-नक्श आकर्षक;
अंगों में दबी है सुरभित लावण्य की
कोई लहक-दहक!
आँखें-कँटीली; रूप में सम्मोहन!
दाड़िम-सा फूट पड़ने को था मानो इसका यौवन!
पर
पथ-भूली, खोई-खोई सी रहती है; करती रहती है
मन में स्वेटरी उधेड़-बुन;
जाने क्या खाये जा रहा है इसे-
कोई भीतरी घुन!

पीलिया, सूखा, मिरगी, टी.बी. या कैंसर-
है क्या बेचारी अपने किसी रोग से बेखबर!
आँखें सूनी-सूनी!
अरे, रोग है इसे तो कोई अन्दरूनी!
जल्दी चॅक कराओ!

1976