भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जापान में साकुरा / तरुण

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:53, 20 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर खंडेलवाल 'तरुण' |अनुवादक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(भारत-जापान सांस्कृतिक संघ, टोकियो, जापान के भवन के बाहर नव वसन्तागम की दोपहरी में फूलते जापान के सुकुमार सांस्कृतिक पुष्प साकुरा के वृक्षों को देखकर)

आधी रात के सुप्त अँधेरे सन्नाटे में
जिसके हिरोशिमा, नागासाकी-
किए गए हैं दस्यु, मृत्युवाही बमों से ध्वस्त;
जिसका मन है, आज तक-
हरे-कच्चे अंगूरों जैसे अनरिसे घावों की पीड़ा से संत्रस्त;
हर लिया गया है यों-
जिसकी आत्मा का उल्लास,
वही संन्यस्त-मन तो हँस सकता है-
आबदार मोतियों का हास;-
लेे हुए धीमी, मौन, गहरी, करुण, टकराती निःश्वास!
समुद्र की लहरों के करुण रोर में,
करुण स्मृतियों से
रहते हैं गीले जिसके अधमुँदे नैन-
वही तो बोल सकता है,
अमिताभ का अनुयायी,
आत्मा की कराहमयी भाषा में,
साकुरा के पुष्पों के रूप में-
नीरव, मित,
माखन-जैसे, मृदु-स्निग्ध बैन!

1971