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फ़्रेमों में जड़ी हँसी / विजय किशोर मानव

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फ्रेमों में जड़ी हंसी
कीलों-सी गड़ी हंसी

नाखूनों में हिलती
फांसों-सी गड़ी हंसी

मुंह चिढ़ा रही सबको,
बौनों की बड़ी हंसी

मीनाबाज़ारों में,
बिकने को खड़ी हंसी

चाभी भरने वाले,
हाथों की घड़ी हंसी

चमन हुए गुलदस्ते,
मुरझाई पड़ी हंसी

कामयाब रखते हैं,
जादू की छड़ी हंसी

दादा की पूंजी है,
चूल्हे में गड़ी हंसी