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आधी रोटी एक कहानी / विजय किशोर मानव
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आधी रोटी एक कहानी
रोज़ सुलाए सातों प्रानी
चूल्हे गर्म घड़ी-भर रहते
देह पड़े दिन-भर सुलगानी
है कटार गरदन पर, मुंह को
प्रजातंत्र की महिमा गानी
बिकें उधार, तौल में, उस पर
सौ तहरीरें पड़ें लिखानी
जंगल छोड़, हर कहीं कर्फ़्यू
हैं शिकार पर राजा-रानी
भरे जेठ में शोर हर कहीं
बोल मछरिया कित्ता पानी