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बच्चे बड़े हो गए हैं / रमेश तैलंग
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कच्ची उम्र में पके हुए बच्चे
कब-कब ये क्या कुछ सीख जाते हैं
पता भी नहीं चलता
उनके मां-बापों को।
घुप्प अंधेरे के बीच
सटे हुए कमरों में
जो कुछ भी चलता है,
छुपा नहीं रह पाता
बच्चों की आंखों से।
बत्तियां बुझते ही
दीवारें, दरवाजे
सब के सब पारदर्शी होने लगते हैं
और मां-बाप की खुली हुई आंखें
वह नहीं देख पाती
जो बच्चों की मुंदी हुई
आंखें देख लेती हैं।
मां-बाप-
क्या सचमुच कुछ भी नहीं जानते?
बच्चे-
क्या सचमुच बहुत कुछ जानने लगे हैं?