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आत्म-सम्बोधन / हरिपाल त्यागी
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ओ, भले मानुष
तू भी कुछ सीख ले
जमाना कहां से कहा
जा रहा है...!
तेरा यह ऊबा हुआ/बासी चेहरा
किसी काम का नहीं
इसलिए-कुछ कर
और नहीं तो
अपना सिर ही कड़ाही में
डाल दे,
बचे-खुचे बालों को डाई कर ले
या फिर-
दो-चार विग ही खरीद डाल
वर्ना पछताएगा
टापता रह जाएगा...
घर से निकलते वक्त/जेब में तहाकर रख ले
कुछ चेहरे/रबड़ की कुछ मुस्कानें
उठ/कदम आगे बढ़ा/कुछ कर
खुद को सादतपुर से ठेलकर
मंडी हाउस तक ला
सड़े हुए दांत नाली में फेंक दे
नकली दांतों से मुस्करा
जीने का कुछ तो सलीका सीख
ओ भले मानुष!