तू मुझे संतोष का
उपदेश देता ही रहा,
औ’ लुटेरा लूट से
अपना घर भरता रहा।
अहिंसा, शांति का उपदेश बस मेरे लिए था?
और समरथ इंसानियत को कत्ल ही करता रहा।
इस अनोखे जाम को तोडूंगा मैं
सत्य कड़वा है, मगर बोलूंगा मैं।
अपनी उगाई फसल से वंचित हूं मैं
अपनी बनाई चीज से वंचित हूं मैं
किसलिए बाजार में बिकता हूं मैं
भेद गहरा है मगर खोलूंगा मैं
सत्य कड़वा है मगर बोलूंगा मैं।
द्रौपदी का चीर खींचा तो महाभारत हुआ
मेरी बहनें बिक रही हैं कृष्ण को अब क्या हुआ,
जो भी यहां अवतार है, बस बड़ों के साथ हैं
अवतार अपना तो सिर्फ अपना हाथ है!
काट दो मेरी जुवां, फिर हाथ से बोलूंगा मैं,
सत्य कड़वा है, मगर बोलूंगा मैं।