भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आकाशदीप / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:28, 23 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=साध...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पथ पर है गतिमान देश; क्यों रुकते भारतवासी
हम वेदों के पुत्रा वही हैं, भैरव सुर में गाओ
बार-बार उपनिषद ज्ञान से दुनिया को नहलाओ
यात्रा पर कैसे निकलोगे मुँह पर लिए उदासी ।
कहो सृष्टि से हमने गिनना तारों को सिखलाया
वाणी को संगीत दिया, दी शांति मृत्यु को हमने
बादल बन बरसा मरु-मरु में, ग्रीष्म लगा जब जमने
ब्रह्म-जीव सब एक साँस से बंधे हुए, दिखलाया ।
हमने ही यह कहा, विश्व-वसुधा ही एक कुटुम है
जिसको दुनिया आज रट रही अपनी खोज बता कर
अब तो गीत बने हैं, गीता का उपदेश सुना कर
दान-धर्म के विश्व-भाल पर मेरा ही कुमकुम है ।
नभ पर द्वीप रखो, तो सागर पर तुम सेतु बनाओ
पार लगे जलयान उछल कर, ऐसी ज्वार उठाओ ।