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37 / हीर / वारिस शाह
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घर रब्ब दे मसजदां हुंदियां ने एथे गैर शरह नहीं वाड़ीये ओए
कुता अते फकीर पलीत होवे नाल दुर्रिआं<ref>नमाज़</ref> बन्नके मारीये ओए
तारक हो सलवात<ref>कोड़े</ref> दा पटे रखें लब्बों वालया मार पछाड़ीये ओए
नीवां कपड़ा होवे तां पाड़ दईये लमां होन दराज तां साड़ीये ओए
जेहड़ा फका असूल दा नहीं वाकफ ओहनू चा सूली उते चाड़ीये ओए
वारस शाह खुदा दे दुश्मनां नूं दूरों कुतियां वांग दुरकारीये ओए
शब्दार्थ
<references/>