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53 / हीर / वारिस शाह

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लै के सठ सहेलियां नाल आई हीर मतड़ी रूप गयान दी जी
बुक मोतियां दे कन्नीं चमकदे सन कोई रूप ते परी दी शान दी जी
कुड़ती सोंहदी हिक दे नाल फबी होश रही न जिमीं असमान दी जी
उहदे नक बुलाक ज्यों कुतब तारा<ref>ध्रुव तारा</ref> जोबन भिनड़ी कहर तूफान दी जी
आ नी बुंदयां वालीए टलीं मोईये अगे कई गये तंबू तान दी जी
वारस शाह मियां जटी लैहड़ लुटी फिरे भरी हंकार ते मान दी जी

शब्दार्थ
<references/>