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इक्कीसवीं सदी के अंत में / कर्मानंद आर्य

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मंगरू तुम्हारे हिस्से की जमीन खोद रहा है
तुम उसके हिस्से का ले रहे हो अक्षर ज्ञान
मंगरू पीठ पर लाद रहा है अनाज
तुम दानों को रूपये की तरह गिन रहे हो
मंगरू अभी अभी निकला है शहर
तुम्हारे बड़े भाई ने उसे काम पर लगा लिया है
मंगरू ने पगड़ी बाँध ली है
खिल उठा है तुम्हारा माथा
मंगरू तुम्हारे लिए मरता है, मिटता है
कैंसर हो जाने तक आह नहीं करता
मंगरू तुम्हारे हिस्से में
अभी तक बटाईदार नहीं बना
तुम खुश हो मंगरू खुश है
और क्या चाहिए अच्छी दुनिया के लिए
क्योंकि अच्छी दुनिया में
सब निर्धारित है
सब नियोजित