कौशल्या / चौदहमोॅ खण्ड / विद्या रानी
जैन्होॅ राम छे वैन्हेॅ काम,
जग जीति केॅ अइलोॅ राम ।
अबेॅ हुनकोॅ अभिषेक करोॅ,
सिंहासन पर बैठाय केॅ आँख भरोॅ ।
सभै के कामना पूर्ण होय गेलै,
फिनु अभिषेक के सामान मंगलकै ।
राजा राम बनलै अयोध्या में,
तिरपित होलै कौशल्या मनोॅ में ।
अभिषेक के बाद जखनी राम नें,
करलकै कौशल्या केॅ परनाम ।
मात नें हिरदय लगैलकै,
पावि गेलै सुखोॅ के धाम ।
विवेकपूर्ण रहली कौशल्या,
मुख चूमी चूमी खुश भेली ।
केतनो दुख दै छै विधाता,
समय अइतै सुख पावै छै ।
कौशल्या मन पूरी गेलोॅ छै,
आखिर राम राजा बनलोॅ छै ।
गेलोॅ धन लौटी अयलोॅ छै,
कुकाल बीती सुकाल अयलोॅ छै ।
आपनोॅ सुत केॅ हिय लगाय केॅ,
गोदी में ओकरा सुताय केॅ ।
पूछेॅ लगली कौशल्या माय,
केना मारलौ राक्षस केॅ जाय ।
केमल शरीर सुकुमार हाथ,
एतना तीर चलैलौ केना ।
दस दस मुख वाला बड़का राक्षस केॅ,
तोहें मारि गिरैलौ केना ।
लछमन के मूर्छा अयला पर,
धीर केना तोहें धरलौ ।
ओकरोॅ जान बचाय के तोहं,
मेघनाथ के केना मारलौ ।
जेतना दुख वन के सोचलेॅ छेलै,
ऊ तेॅ कुछु छेवे नै करलै ।
ओकरा सें चैगुना दुख मिललौ,
तोहें केना सहेॅ पारले छौ ।
सिर सहलाय लागली माता,
हाथ गोड़ सब निरखेॅ लगली ।
निर्मल कोमल श्यामल वदनोॅ के शक्ति,
छुवि छुवि केॅ परखे लागली ।
हारलोॅ मन जीती गेलोॅ छेलै,
मरलोॅ धान में पानी पड़लोॅ छेलै ।
माय कौशल्या अति गुणवंती,
पुत्रा धन फिनु पावी गेलोॅ छेलै ।
कहलकोॅ राम सुनु हे माता,
सहलियै हम्में जे एतना आघात ।
तोरोॅ आशीर्वाद उहाँ पहुँचै छेलै,
अँचरा के छहारम वहाँ मिललोॅ छेलै ।
तोरोॅ देहे यहाँ छेलो मन कहाँ छेलोॅ,
हमरा लागै छै हमरे ऊहाँ छेलोॅ ।
एक्को छन हमरा भुलैलोॅ की?
हमरा संग तोहें नै छेलौ की ।
तोरे आशीष सें रण जीतलियै,
वन खेली घर आवि गेलियै ।
जौं तोहें आशीष नै देतिहौं,
सच्चे कहे छियौं जीते नै पारतियौं ।
एही रंग सुरु वाद करलकै,
माता पुत्रा दुनु खूब बोललकै ।
हिरदय जुड़ैलकोॅ कौशल्या रानी,
सुनि सुनि वनगमन केरोॅ कहानी ।
जाय ताँय जीली पुत्रा सुख पैलकी,
राम माय बनी केॅ यश पैलकी ।
दया पूर्ण सुखों के सागर,
धीरज भरलोॅ विवेक के गागर ।
आपनोॅ रंग के आपने चरित छै,
कोय नै हिनका रंग होलोॅ छै ।
गुण गावै छै सब वेद पुराण,
पुण्य परताप सें पैलकोॅ पूत राम ।
कौशल्या छै कल्याणोॅ के मूरति,
परनाम करै छियै हुनका सुमरि ।
सुन्दर सगुन शुभ मंगल दहु माय,
राम सीता के किरपा दिलावोॅ आय ।
जे हुनका रंग धीर धरै छै,
दुख समुद्र संपार करै छै ।
बुद्धि विवेक सें विचारी केॅ,
कुटुम्बोॅ के बाँधि राखै छै ।