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63 / हीर / वारिस शाह
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घोल घोल घत्ती तैंडी वाट उतों बेली दस खां किधरों आवना है
किसे मान मत्ती घरों कढिया तूं जिस वासते फेरियां पौणा है
कौण छड आयों पिछे मेहर वाली जिस वासते तूं पछोतौणा है
कौण ज़ात ते वतन नाम की साइओं दा अते जात दा कौण सदावना है
तेरे वारने होनिआं मैं चौखने मंगू बाबले दा चार लिआवना है
मंगू बाबले दा ते तूं चाक मेरा एह भी फंध लगे जे तूं लावना है
वारस शाह चहीक<ref>मिट्टी, नरम काही</ref> जे नवीं चूपें सभे भुल जानीं जेहड़ियां गावना है
शब्दार्थ
<references/>