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77 / हीर / वारिस शाह
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पास माउं दे हीर ने गल कीती माही महीं दा आणके छेड़या मैं
नित पिंड दे विच विचार पौंदी एह झगड़ा चा नबेड़या मैं
सुन्ना नित रूलें मंगू विच बेले माही सुघड़ ही आन सहेड़या मैं
माई करम जागे साडे मंगूयां दे साऊ असल जटेटड़ा घेरया मैं
शब्दार्थ
<references/>