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78 / हीर / वारिस शाह

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मखण खंड पराउंठे खाह मियां मझीं छेड़ रे रब्ब दे आसरे ते
हस खेड रंझेटिआ जाल मियां गुजर आवसी दुध दे कासड़े ते
हीर आखया रब्ब रजाक<ref>रोजी देने वाला</ref> तेरा मियां जाईं ना लोकां दे हासड़े ते
मझीं छेड़ देवीं झल विच झंगडे<ref>चरांद, जंगल</ref> दे आप हो बहीं इक पासड़े ते

शब्दार्थ
<references/>