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83 / हीर / वारिस शाह

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हीर आखदी रांझणा! बुरा कीतो तूं तां पुछणा सी दुहराए के ते
मैं तां जाणदा नहीं सां एहु सूहा<ref>मुखबिर</ref> खैर मंगिया सू मैथों आए के ते
खैर लैंदो ही पिछांह नूं तुरत नठा उठ वगिया कंड वलाए<ref>मोड़ के</ref> के ते
नेड़े जांदा ई जाए मिल नडीए नी जाए पुछ लै गल समझाए के ते
वारस शाह मियां उस थीं गल पुछीं दो तिन अडिआं हिक विच लाये के ते

शब्दार्थ
<references/>