भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
97 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:37, 31 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
वलौ बसतलाहि रिज़क अलअबादा<ref>परमात्मा का दिया खुला भंडार</ref> रज खाए के मुसतिआं चाइयां नी
कुलू वशरबू दा सी अमर होया ला तुसरे फू<ref>फजूलखर्ची ना करो</ref> फुरमाइयां नी
किथों पचण इहनां मुशटंडियां नूं नित खांवदे दुध मलाइयां नी
रिज़क रब्ब देसी असीं उठ चले लगा करन हुण ऐड चवाइयां नी
वमामिन बहिश्त फिलअरज<ref>धरती पर स्वर्ग</ref> होया आहे लै सांभ मझीं घर आइयां नी
शब्दार्थ
<references/>