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98 / हीर / वारिस शाह

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रांझा सुट खूंडी उतों लाह भूरा छड चलिया सभ मंगवाड़े मियां
जेहा चोर नूं खुरे दा खड़क पहुंचे छड जावंदा सन्न दा पाड़ मियां
दिल चाया देस ते मुलक उतों उहदे भा दा बोलया हाड़<ref>मुरदे की आवाज़</ref> मियां
तेरियां कटियां कटदे मिलन सभे खड़े खोलियां नूं कोई धाड़ मियां
तेरी धी नूं असीं की जानदे हां तैनूं आवंदी नजर देहाड़ मियां
मैंनूं महीं दी कुझ परवाह नाहीं नढी पई सी एस रिहाड़ मियां
मंगू मगर मेरे हथों आंवदा ए महीं अपनियां महर जो ताड़ मियां
घुट बहें चराई तै मइयां दी सही कीता ई कोई कराड़ मियां
मझीं चारदयां नूं होए बरस बारां अज उठयो अंदरों साड़ मियां
बही खतरी दी रही खतरी थे लेखा गया है होए पहाड़ मियां
तेरी धी रही तेरे घर बैठी झाड़ा मुफत दा लया ई झाड़ मियां
हट भ्रे भकुन्ने नूं सांभ लया कढ छडयो नंग कराड़ मियां
वारस शाह अगे पूरी नाह पइयां पिछों आया सैं पड़तने पाड़ मियां

शब्दार्थ
<references/>