भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

115 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:03, 31 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अखीं लगियां मुड़न ना बीर मेरे बीबा वार घती बलहारियां वे
वहिण पए दरया नहीं कदी मुड़दे वडे ला रहे जोर जारियां वे
लहू किउं करना निकले भाई ओथेां जिथे लगियां तेज कटारियां वे
लगे दसत इक वार ना बंद कीचन वैद लिखदे बैदगिआं सारियां वे
सिर दितयां बाझ ना इशक पके एह नहीं सुखालियां यारियां वे
वारस शाह मियां भाई वरजदे नी देखो इशक बणाइयां खुआरियां वे

शब्दार्थ
<references/>