भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
122 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:04, 31 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
फलहे कोल जिथे मंगू बैठदा सी ओथे चाल हैसी घर नाइयां दा
मिठी नाएण घरां संदी खसमनी सी नाई कम करदे फिरन साइयां दा
घर नाइयां दे हुकम रांझने दा जिवें साहुरे हुकम जवाइयां दा
चा भा मिठी फिरन वालयां दी बाग खुलदा<ref>स्वर्ग का बाग</ref> लेफ तुलाइयां दा
मिठी सेज वछाई के फुल पूरे उते आंवदा कदम खुदाइयां दा
दोवं हीर रांझा रातीं करन मौजां मझीं खान खढ़ियां सिर साइयां दा
घड़ी रात रहिंदी हीर घर जांदी रांझा भाउ पुछांवदा धाइयां दा
आपो अपनी कार विच रुझ जांदे बूहा फेर ना देखदे नाइयां दा
शब्दार्थ
<references/>