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124 / हीर / वारिस शाह
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कैदो आखदा मलकिए भेड़िए नी तेरी धीउ नूं वडा चंचल चाया ई
जाए नदी ते चाक दे नाल घुलदी एस मुलख दा अध गवाया ई
मां बाप काजी सभे होड़ थके एस इक ना जीउ ते लाया ई
मुंह घुट रहे वाल पुट रही थक हुट रही गैब चाया ई
हिक हुट रहे सिर सुट रहे अंत हुट रहे मन ताया ई
वारस शाह मियां सुते मामले नूं लंगे लुचेने फेर जगाया ई
मलका आखदी सद तूं हीर तांई झब हो तूं औलिया नाईया वे
अलफू मोचिया मौजमा वागिया वे ढुडू माठिया भज तूं भाईया वे
वारस शाह माही हीर नहीं आई मेहर मंगूआं दी घरों आईंया वे
शब्दार्थ
<references/>