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150 / हीर / वारिस शाह
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चूचक आखदा अखीं विखा मैंनूं मुंडी<ref>सिर</ref> लाह सुटां गुंडे मुंडयां दी
हक अयां तराह मैं तुरत माही साडे देस ना थां है गुंडयां दी
सिर दोहां दे वढ के अलख लाहां असीं सथ ना परे हां गुंडयां दी
कैदो आखया वेख फड़ावना हां भला माखड़ी एहनां लुंडयां दी
एस हीर दे बिरछ दी भंग लैसां सेहली वटसां चाक दे जुंडयां दी
अखीं वेख के फेर जे ना मारो तदों जानसों परे दे बुंडयां दी
वारस शाह मियां एथों खेड़ पौंदी वेखो बुंडयां दी अते मुंडयां दी
शब्दार्थ
<references/>