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153 / हीर / वारिस शाह
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परे विच बेइजती कल होई चोभ विच कलेजे दे चमकदी ए
बेशरम है टप के सिरीं चढ़दा भले आदमी दी जान धमकदी ए
चूचक घोड़े ते तुरत सवार होयां हथ सांग जयों बिजली लिशकदी ए
सुम्म घोड़े दे काड़ ही काड़ वजन हीर सुनदयां रांझे तों खिसकदी ए
उठ रांझया बाबल आंवदा ईनाले गल करदी नाले रिसकदी ए
शब्दार्थ
<references/>