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165 / हीर / वारिस शाह
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चूचक सयाल तों लिखके नाल चोरी हीर सयाल बह कही बतीत हैनी
साडी खैर है चाहुंदी खैर तुसां दी जेही खत ते लिखण दी रीत है नी
होर रांझे दी बात जो लिखीया जे एह तां गल बुरी अनानीत<ref>बुरी</ref> है नी
रखा चाए मसहिफ<ref>कसफ</ref> कुरान उस नूं कसम खाए के विच मसीत है नी
तुसीं मगर क्यों एस दे उठ पइयो एहदी असां दे नाल प्रीत है नी
असीं त्रिंजणां विच जा बहणिआं सानूं गाउणा एस दा गीत है नी
दिने छोड मझी वड़े झल घेले एस मुंडड़े दी एहा रीत है नी
रातीं आयके अला नूं याद करना वारस शाह दे नाल एह पीत हैनी
शब्दार्थ
<references/>