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199 / हीर / वारिस शाह

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हीरे रूप दा कुझ वसाह नाहीं मान मतीए मुशक पलटिए नी
नबी हुकम निकाह फरमा दिता रद फअनकहू मन लै जटिए नी
कदी दीन असलाम दे राह टुरिए जड़ कुफर दी तिले तों पटिए नी
जेहड़े छड हलाल हराम तकन विच हाविए दोजखी सटिए नी
खेड़ा हक हलाल कबूल कर तूं वारस शाह बन बैठिए वहुटिए नी

शब्दार्थ
<references/>