भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ठीक उसी समय / आभा पूर्वे

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:01, 31 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आभा पूर्वे |अनुवादक= |संग्रह=गुलम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चलते-चलते
मेरे पाँव
थक गए हैं
पर मेरा
मन नहीं थकता

जब भी मैं
यह अहसास करती हूँ
कि मेरा प्यार
मेरे करीब आ गया है
तभी वह कहीं ओझल हो जाता है
दूर हो जाता है
अपने पाँव में
पंख बांधकर।