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मुक्तक / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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4-मुक्तक
रामेश्वर कम्बोज ‘हिमांशु’
अपनी परछाई भी कभी धोखा दे देती,
पर आँसू का साथ उम्र भर का होता है ।
हँसने के तो गीत विदूषक गा देते हैं,
किन्तु विछोह की आग सिर्फ़ हृदय ढोता है ॥
तुम्हारे इन्तज़ार में हम मज़ार बन बैठे
हो सके तो तुम कभी चिराग़ जलाते रहना ।
हमसे अगर नहीं है मुहब्बत अब भी तुमको
कसम है तुम्हें-यह राज़ किसी से न कहना ॥
कटती ज़िन्दगी कैसे बेचारा फूल क्या जाने
गुज़रती दिल पर क्या-क्या यह तो ख़ार से पूछो ।
किनारों पर आकर भी कुछ तो डूब जाते हैं
जो डूबकर भी बच निकले मझधार से पूछो ॥
संकल्प जगें तो पर्वत भी हिल जाया करते हैं ।
टूट-टूट्कर शिखर धूल में मिल जाया करते हैं ।
मरुभूमि सहचरी बन सरिता हरियाली भरती
हथेली पर काँटों की फूल खिल जाया करते हैं ॥