भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उदयवीर सिंह के नाम / कांतिमोहन 'सोज़'
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:09, 2 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कांतिमोहन 'सोज़' |संग्रह=दोस्तों...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(यह ग़ज़ल उदयवीर सिंह के नाम)
इतना न हँसाओ कहीं कुछ टूट गया है।
एक शम्आ जलाओ कहीं कुछ टूट गया है॥
मुमकिन है कि इस बार न चमके कोई कौंधा
मत जाम उठाओ कहीं कुछ टूट गया है।
रेज़ों में बिखर जाए तो होता है नुकीला
ठोकर न लगाओ कहीं कुछ टूट गया है।
क्या तुमको तमाशे का कोई शौक़ नहीं है
टुक दौड़के आओ कहीं कुछ टूट गया है।
वो दिल तो नहीं था कोई आवाज़ न आई
आवाज़ उठाओ कहीं कुछ टूट गया है।
तूफ़ाँ में चराग़ों ने कफ़न ओढ़ लिया है
अब दिल ही जलाओ कहीं कुछ टूट गया है।
अपना है अहद सोज़ कि हम कुछ न कहेंगे
अंदाज़ा लगाओ कहीं कुछ टूट गया है।
2002-2017