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211 / हीर / वारिस शाह
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काज़ी पड़ह निकाह ते घत डोली नाल खेड़या दे दिती टोर मियां
तेवरां बेवरां<ref>कपड़े</ref> नाल जड़ाउ गहिने दम दौलतां नअमतां होर मियां
टमक<ref>छोटा नगारा</ref> महीं अते नाल ऊंठ घोड़े गहिणा पतरां<ref>धातु की चादर</ref> ढगड़ा ढोर<ref>पशु</ref> मियां
हीर खेड़या नाल न टुरे मूले पया पिंड दे विच एह शोर मियां
वारस हीर नूं घिंन के रवां होए<ref>हीर को लेकर</ref> जिवें माल नूं लै के चोर मियां
शब्दार्थ
<references/>