भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
281 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:36, 3 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अवे सुनी चाका सुआह ला मुंह ते जोगी होयके नजर भवा बैठों
हीर सयाल दा यार मशहूर रांझा मौजां मन्न के कन्न पड़ा बैठों
खेड़े यार लै गए मुंह मार तेरे सारी उमर दी लीक लवा बैठों
तेरे बैठयां वयाह लै गए खेड़े दाड़ी परे दे विच मुणा बैठों
जदों डिठया चाआ ना कोई लगे ए बूहे नाथ दे अंत नूं जा बैठों
मंग छडीए नहीं जे जान होवे बली वधरा छड हया बैठों
अमल ना कीतो ई गाफला ओए ऐवें कीमियां उमर गवा बैठों
वारस शाह तरयाक<ref>साँप के ज़हर को दूर करने की दवा</ref> दा थां नाहीं हथीं जहर तूं खा बैठों
शब्दार्थ
<references/>