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302 / हीर / वारिस शाह
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सानूं नांह अकाउंदी भात खानी खड क्रोध दा हमी ना हूतने हां
जे आपने दा ते आ जाईए खुली झंड सिर ते असीं मूतने हां
घर मेहरां दे कासनूं असां जाना सिर महरीयां दे असीं भूतने हां
वारस शाह मियां भठ बाल भांबड़ उलटे रात नूं होयके झूटने हां
शब्दार्थ
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