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305 / हीर / वारिस शाह

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रांझा खपरी पकड़ गदा<ref>भिखारी</ref> चढ़यां सिंगी दुआर ही दुआर वजांवदा ए
कोई दे सीधा कोई दे टुकड़ कोई थाल परोस लिआंवदा ए
कोई आखदी जोगीड़ा नवां आया कोई रोह दियां भवां चढ़ांवदा ए
कोई दे गाली धाड़े मार फिरदा कोई बोलदी जो मन भांवदा ए
कोई जोड़के हथ ते करे मिंनतां सानूं आसरा फकर दे नांवदा ए
कोई आखदी मसतया चाक फिरदा नाल मस्तियां पाटदा जांवदा ए
कोई आखदी मसत दीवानड़ा ए चोरां चोबरां वांग दिस आंवदा ए
लड़े भिड़े ते गाली दे लोकां ठठे मारदा लोड़ कमांवदा ए
आटा कनक दा ते घिउ लए बहुता दाना टुकड़ा गोद<ref>झोली</ref> न लांवदा ए
वारस शाह रंझेटड़ा चंद चढ़या घरो घरी मुबारकां लयांवदा ए

शब्दार्थ
<references/>