भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
316 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:53, 3 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जट वेख के जटी नूं कांग कीती वेखो मरी नूं रिछ पथलया जे
मेरी सैआं दी मेहर नूं मार जिंदे तिलक मेहर दी सथ नूं चलया जे
लोकां बाहुड़ी ते फरयाद कूके मेरा झुगड़ा चैड़ कर चलया जे
पिंड विच एह आन बला वड़ी जहां जिन पकवाड़ विच मलया जे
पकड़ लाठियां गभरू आन ढुके वांग काढवे कटक दे टलया जे
वारस शाह जिवें धूंआं सरकया तों बदल पाटके घटा हो चलया जे
शब्दार्थ
<references/>