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316 / हीर / वारिस शाह

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जट वेख के जटी नूं कांग कीती वेखो मरी नूं रिछ पथलया जे
मेरी सैआं दी मेहर नूं मार जिंदे तिलक मेहर दी सथ नूं चलया जे
लोकां बाहुड़ी ते फरयाद कूके मेरा झुगड़ा चैड़ कर चलया जे
पिंड विच एह आन बला वड़ी जहां जिन पकवाड़ विच मलया जे
पकड़ लाठियां गभरू आन ढुके वांग काढवे कटक दे टलया जे
वारस शाह जिवें धूंआं सरकया तों बदल पाटके घटा हो चलया जे

शब्दार्थ
<references/>