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317 / हीर / वारिस शाह

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आय आय मुहानयां जदों कीती चहुं कन्नी जां पलम के आ गए
सचो सच जां फाट नूं तयार होए जोगी होरी भी जिउ चुग गए
वेखो फकर अलाह दे मार जटी उस जटी नूं वायद पा गए
जदों मार चैतरफ तयार होई ओदों आपना आप खिसका गए
इक फाट कढी सभे समझ गइयां रन्नां पिंड दियां नूं राह पा गए
जदों खसम मिले पिछे वाहरां दे तदों धाड़वी घोड़े दुड़ा गए
हथ ला के बरकती जुआन पूरे करामात ही जाहरा विखा गए
वारस शाह मियां पटे बाज छुटे जान रख के चोट चला गए

शब्दार्थ
<references/>