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319 / हीर / वारिस शाह

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जोगी हीर दे सौहरे जा वड़या भुखा जट जिउं फिर लालोरदा जी
आया खुशी दे नाल दहचद होके सूबेदार जिउं नवां लाहौर दा जी
धुस दे के वेहड़े विच आ वड़या कड कीता सू सन ते चोर दा जी
अनी खेड़यां दी पयारी वौहटीए नी हीरे सुख है चा टकोरदा जी
वारस शाह अगे हुण पई फाहवी शगन होया है जंग दे शोर दा जी

शब्दार्थ
<references/>