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346 / हीर / वारिस शाह

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जेही नियत है तेही मुराद मिलीया घरो घरी छाई सिर पावना एं
फिरे भौंकदा मंगदा खवारहुंदा लख दगे पखंड कमावना एं
सानूं रब्ब ने दुध ते दहीं दिता असां खावना ते हंडावना एं
सोना रूपड़ा<ref>सोना-चांदी</ref> पहन के असीं बहिए वारस शाह क्यों जीभ रमावना एं
गधा उदरका<ref>नखरे</ref> नाल ना होय घोड़ी शाह परी ना होए यरोपीए नी
गोरे रंग दे नाल तूं जग मुठा विचों गुनाह दे कारने पोलीए नी
वेहड़े विच तूं कंजरी वांग नचे चोरां यारां दीए विच वचोलीए नी
असांपीर कहया तुसां हीर जाता भुल गई हैं समझ विच भालीए नी
अंत एह जहान छड जावना ए ऐडे कुफर अपराध ना तोलीए नी
फकर असल अलाह दी हैन सूरत अगे रब्बदे झूठ ना बोलीए नी
हुसन मतीए बोबके<ref>मूर्ख</ref> सोन चिड़ीए नैनां वालिये शोख ममोलीए नी
तैंढा भला थीवे साडा छड पिछा अबा जिऊनीए आलीए भोलीए नी
वारस शाह केती गल होए चुकी मूत विच ना मछीयां टोलिए नी

शब्दार्थ
<references/>