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353 / हीर / वारिस शाह

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जेहड़ियां लैण उडारियां नाल बाजां उह बुलबुलां ठीक मरींदियां ने
उन्हां हरनियां दी उमर हो चुकी पानी शेर दी जूह जो पींदियां ने
उह डायनां जान कबाब होइयां जेहड़ियां बेड़ीयां नाल खहींदियां ने
उह इक दिन फेरसन आन घोड़े किडां जिंहां दियां नित सुनींदियां ने
जोकां इक दिन पकड़न चोड़ी अणियां लहू अनुपते नित जो पींदियां ने
दिल माल दीजे लख कंजरी नूं कदी दिलों महबूब ना थींदियां ने
इक दिन पकड़ियां जानगियां हाकमां दे पराई सेज जो नित चूड़ींदियां ने
इक दिन गड़े वसावसन उह घटां होठां जोड़के नित गरजींदियां ने
तेरे लवन मोढे साढे लवण नाड़े मुशकां किसे दीयां अज बझींदियां ने

शब्दार्थ
<references/>