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361 / हीर / वारिस शाह
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होली सहज सुभा दी गल कीजे नाही कड़किये बोलिये गजिये नी
लख झट तरले फिरे कोई करदा दिते रब्ब दे बाझ ना रजिए नी
धयान रब्ब ते रख ना हो तती दुख औगुनां होन तां कजिए नी
असीं नजर करीए तुरत होन राजी जिन्हां रोगियां ते जा वजिए नी
चैदां तबका<ref>असमान</ref> दी खबर फकीर रखन मुंह तिन्हां तों कासनूं कजिए नी
जदों हुकम विच माल ते जान होवे उस रब्ब तों कासनूं भजिए नी
सारी उमर जो पलंघ ते रहे नढी एसे अकल देनाल कुचजिए नी
शरम जेठ ते सौहरयां करन आई मुंह फकरां तों काहनूं कजिए नी
वारस शाह तद इशक दी नजर दिसे जदों आपने आपनूं कजिए नी
शब्दार्थ
<references/>