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365 / हीर / वारिस शाह

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मान मतिए रूप गुमान भरिए भैड़े कारीए गरब गहेलीए नी
एडे फंद फरेब ने याद तैनूं किसे वडे उस्ताद दी चेलीए नी
एस हुसन दी ना गुमान करीए मान मतीए गरब<ref>अहंकार</ref> गहेलीए नी
तेरी भाबी दी नहीं प्रवाह सानूं वडी हीर दिये अंग सहेलीए नी
मिले सिर नूं ना विछोड़ दईए सगों विछड़े सिरां नूं मेलीए नी
केहा वैर फकीर दे नाल चायो पिछा छड अनोखिए लेलीए नी

शब्दार्थ
<references/>