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379 / हीर / वारिस शाह

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सहती आखया एह मिल गए दोवें लई घत फकीर बलाइयां<ref>आफतें</ref> नी
एह वेख फकीर निहाल होई जड़ियां एस नूं घत पिवाइयां नी
आखे हीर नूं मगज खपा नाहीं नी मैं तेरियां लवां बलाइयां नी
एस जोगड़े नाल तूं खोज नाही अनी भाबीए घोल घुमाइयां नी
मता घत जादू मते करे कमली गलां एसदे नाल की लाइयां नी
एह न खैन ना भिछया लवे दाने किथों कढीए दुध मलाइयां नी
डर आंवदा भूतने वांग इस तों किसे थां दियां एह बलाइयां नी
लै के खैर ते जा फरफेजिया<ref>कपटी</ref> वे अतां रावला केहियां चाइयां नी
फिरे बहुत पखंड खलारदा तूं उथे केहियां वललियां<ref>उलट-पुलट</ref> चाइयां नी
वारस शाह फकीर दी अकल किथे एह तां पटियां<ref>सबक, अकल</ref> इशक पढ़ाइयां नी

शब्दार्थ
<references/>