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380 / हीर / वारिस शाह

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मैं अकलड़ा गल ना जाणदा हां तुसीं दोवें ननाण भरजाइयां नी
मालजादियां वांग बना तेरी पा बैठीए सुरम सलाइयां नी
पैर पकड़ फकीर दे देह भिछया अड़ियां कुआरीए केहीयां लाइयां नी
धयान रब्ब ते रख ना हो तती गुसे होण ना भलयां दीयां जाइयां नी
तैनूं शौक है तिन्हां दा भाग भरीए जिन्हां डाचियां मार चराइयां नी
जिस रब्ब दे असीं फकीर होए वेख कुदरतां उस वखाइयां नी
मेरे पीर नूं जाणदे मोयां गयां ताईं गालियां देनियां लाइयां नी
वारस शाह ओह सदा ई जिऊंदे ने जिन्हां कीतियां नेक कमाइयां नी

शब्दार्थ
<references/>