भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

389 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:52, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सैनत मारके हीर ने जोगीड़े नूं कहया चुप कर एस भुकावनी हां
तेरे नाल जे एस ने वैर चाया मथा एसदे नाल मैं लावनी हां
करां गल गलायने नाल इसदे गल एसदे रेशटा<ref>झगड़ा</ref> पावनी हां
वारस शाह मियां राजे याद अे एसनूं कंजरीवांग नवाचनी हां

शब्दार्थ
<references/>