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395 / हीर / वारिस शाह

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जिनां नाल फकीर दे अड़ी बधी हथ धो जहान थी चलियां ने
आ टलीं कुआरिये डारिये नी केहियां चाइयां धजां अवलियां ने
होवे शर्म हया उनां कुआरियां नूं जेड़ियां नेक सोहबत विच रलियां ने
कारे हथियां कुआरियां वेहु भरियां भला क्यों कर रहन नचलियां ने
मुनस मंगदियां जोगिया नाल लड़के राती औखियां होण अकलियां ने
पिछे चरखड़ा रूल है सड़न जोगी कदे चार ना लाहियो छलियां ने
जिथे गभरू होण जा खहे उथे परे मारके बहे पथलियां ने
टल जाह फकीर तों गुंडीए नी आ कुआरिये राहां कयों मलियां ने

शब्दार्थ
<references/>