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407 / हीर / वारिस शाह

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हथ चाय मुतहिर ते कड़किया ई तैनूं आवंदा जग सभ सुंझ रन्ने
चावल नयामतां कणक तूं आप खावे खैर देन ते कीतियां खुंझ रन्ने
खड़ देह चीना घर खावदां दे नहीं मारके करूंगा मुंज रन्ने
पट चिडबियां चैड़ियां घत सुटू ला बहें जे वैर दी चुंझ रन्ने
सिर फौहड़ी मारके दंद झाडूं टगां भन्नके करूंगा लुंज रन्ने
तेरी बरी सूई हुने फोल सुटां बैठी रहेंगी उंज दी उंज रन्ने
वारस शाह सिर चाढ़ वगाड़ीए तूं हाथी वांग मैदान विच गुंज रन्ने

शब्दार्थ
<references/>