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408 / हीर / वारिस शाह
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वांदी हो के चुप खलो रही ऐं सहती आखदी खैर ना पायो कयों
एह तां जोगीड़ा नीच कमजात कंजर, एस नाल उठ भैड़ मचाया कयों
आप जा के देह जे हई लैंदा घर मौत ऐ घत फसायो कयों
मेरी पान पत एस ने लाह सुटी जान बुझ बेशरम करायो कयों
मैं तां एसदे हथ विच आन फाथी मास शेर दे हथ फहायो कयों
वारस शाह मियां एस मोरनी दे दुआले लाएके बाज छुडायो कयों
शब्दार्थ
<references/>