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416 / हीर / वारिस शाह

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जे तूं पोल कढावना नहीं आह ठूठा फकर दा चा भनाईए कयों
जे तैं कुआरियां यार हंढावना सी तां फिर मापयां कोलों छिपाईए कयों
खैर मंगीए ते भन्न देन कासा<ref>प्याला</ref> असीं आखदे मुंहों शरमाईए कयों
भरजाइयां नूं मेहना चाक दा सी यारी नाल बलोचदे लाईए कयों
बोती हो बलोचां दे हथ आईए जढ़ कुआर दी चा भनाईए कयों
वारस शाह जां आकबत<ref>परलोक</ref> खाक होना एथे अपनी शान वधाईए कयों

शब्दार्थ
<references/>