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419 / हीर / वारिस शाह

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हीर आखया एह चवाई<ref>बोल-कबूल</ref> केहा ठूठा भन्न फकीर नूं मारना की
जिन्हां इक अलाह दा आसरा ए उनां फकां दे नाल काहढ़ना की
जेहड़े कन्न पड़ा फकीर होए भला ओहनां दा पड़तना<ref>परदा</ref> पाड़ना की
थोड़ी गल दा बहुत वधान करके सौरे कम्म नूं चा वगाड़ना की
मरे बूहे ते फकर नूं गारया ई वसदे घरां तूं चा उजाड़ना की

शब्दार्थ
<references/>