भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
421 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:04, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
एस फकर दे नाल की वैर चाया उधल जावसैं तै नहीं वसना ई
ठूठे भन्न फकीरां नूं मारनी एं अगे रब्ब दे आख की दसना ई
तेरे कुआर नूं खुआर संसार करसी एह जोगी दा कुझ ना खसना ई
नाल चूहड़े दे खतरी घुलन लगा वारस शाह फिर मुलक ने हसना ई
शब्दार्थ
<references/>