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421 / हीर / वारिस शाह

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एस फकर दे नाल की वैर चाया उधल जावसैं तै नहीं वसना ई
ठूठे भन्न फकीरां नूं मारनी एं अगे रब्ब दे आख की दसना ई
तेरे कुआर नूं खुआर संसार करसी एह जोगी दा कुझ ना खसना ई
नाल चूहड़े दे खतरी घुलन लगा वारस शाह फिर मुलक ने हसना ई

शब्दार्थ
<references/>