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427 / हीर / वारिस शाह

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रांझा खायके मार फिर गरम होया मार मारया भूत फतूर दे ने
वेख परी दे नाल खम<ref>एक जगह का नाम</ref> मारया ए उस फरिशते बैत मामूर<ref>खाना काबा</ref> दे ने
कमर बन्न के पीर नूं याद कीता लाई थापना मलक हजूर दे ने
डेरा बखशी दा मारके लुट लया फते पाई पठान कसूर दे ने
वारस शाह जां अंदरों गरम होया लाटां छटियां ताओ तनूर दे ने

शब्दार्थ
<references/>